यह भी सही और वो भी सही |

मेरे कंधो पे नहीं कोई ज़िम्मेदारियाँ नयी |
प्यार था कभी किसी से,अब किसी से नहीं |
फ़र्क़ पड़ता नहीं रास्ते हो जन्नत या जहनुम के,
यहाँ यह भी सही और वो भी सही |

सही यह भी है की दर्द बाकी हैं सीने मैं मेरे,
छोटी से ख़ुशी का एहसास अब ज्यादा लगता है |
अच्छा लगता हैं जब गिरती हैं बूंदे इश्क़ की मन के आँगन मैं ,
मुझे हवा का हलके से छु जाना बड़ा सुहाना लगता है |

ओस की बूंदे रात मैं ही मिल लेती हैं मुझसे,
सुबह किरणों  से उन्हें डर ज़रा ज्यादा लगता है,
डर लगता हैं उन्हें बिछड़ जाने का खुद से,
ये मिल कर बिछड़ना और फिर मिलना ,
अरे ये प्यार बड़ा पुराना लगता हैं |

और सपने आते हैं मुझे रोज़ मानाने को,
ज़िन्दगी मैं जो न पाया,वो यही हासिल हो जाता है |
पूरी हो जाती हैं ख्वाशिए सारी,
चंद घंटो मैं मेरे सपनो का महल पूरा हो जाता है |

मेरे मन मैं भी रोज़ चलती हैं जंग कई जज़्बातों की,
हार जीत की इस कश्मकश मैं लग जाती है यादों की,
ये भी सही और वो भी सही ,पर इस तन्हाई ने बड़ा परेशां कर रखा है,
ज़रा देखूँ तो सही आज तेरी कौन सी याद ने ऐसा उत्पात मचा रखा है |

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